हिंदी विश्वविद्यालय में फर्जी नियुक्तियों की जांच के नाम पर घालमेल
2016 का असिस्टेंट प्रोफेसर कैसे बना हिंदी विश्वविद्यालय में दूरशिक्षा का प्रोफेसर निदेशक।
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में फर्जी नियुक्तियों पर राष्ट्रपति ने संज्ञान लेते हुए नियुक्तियों में हुई गड़बड़ी की शिकायत के संबंध में शिक्षा मंत्रालय को संज्ञान लेने को कहा था।
शिक्षा मंत्रालय को भी गांधी और विनोबा की इस भूमि में बने इस विश्वविद्यालय की गरिमा और प्रतिष्ठा को बचाने के लिए और देश के उच्च सदनों में उठने वाले तमाम प्रश्नों को करारा जबाब देने के लिए एक उच्च स्तरीय जांच समिति गठित कर जांच कराकर स्थिति को साफ कर देना चाहिए।
वर्धा. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा आये दिन किसी न किसी कारण से चर्चा में बना रहता है। इसी संदर्भ में पिछले दिनों शिक्षा मंत्रालय ने विश्वविद्यालय में हुई फर्जी नियुक्तियों पर संज्ञान लिया है। मामला हिन्दी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल के समय का है जब अपने कार्यालय में उन्होंने लगातार सहायक प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के पदों पर नियुक्तियां किया। उनके द्वारा की गई कुछ नियुक्तियों पर लगातार उंगली उठती रही है। इसी संदर्भ में राष्ट्रपति से शिकायत की गई थी। राष्ट्रपति कार्यालय ने संज्ञान लेते हुए नियुक्तियों में हुई फर्जीवाड़े की शिकायत के संबंध में शिक्षा मंत्रालय को हिंदी विश्वविद्यालय से संज्ञान लेने हेतु पत्र भेजा। राष्ट्रपति के आदेश के बाद शिक्षा मंत्रालय ने विश्वविद्यालय के कुलसचिव को एक पत्र लिखकर जांच करने को कहा था। लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने शिक्षा मंत्रालय द्वारा भेजे गए पत्र को अनदेखा कर शिक्षा मंत्रालय का मजाक बना दिया। जबकि मंत्रालय बार-बार विश्वविद्यालय से जांच कर नियुक्तियों में हुई गड़बड़ी पर कार्यवाही करने को कह रहा है।
विश्वविद्यालय के वर्तमान प्रभारी कुलपति प्रोफेसर के. के. सिंह एवं आनंद पाटिल प्रभारी कुलसचिव इस मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं और तमाम जानकारियों के बावजूद कुछ करने को तैयार नहीं हो रहे है। जबकि विश्वविद्यालय के अनेक छात्र संगठन भी विश्वविद्यालय में हुई इन फर्जी तरीके से नियुक्तियों के संबंध में समय-समय पर आवाज उठाते रहते हैं।
विश्वविद्यालय में अनेक पद ऐसे भरे गए है जिनपर उम्मीदवार योग्यता ही पूरी नहीं करते है इस तरह की चर्चा हमेशा होती रहती है। इस संदर्भ में शिक्षा मंत्रालय ने भी कोई तथ्यपूर्ण जानकारी देना से मना कर दिया। agcnnnews विश्वविद्यालय प्रशासन और सरकार से ये मांग करता है कि पूर्व कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल के समय में जो भी नियुक्तियां हुई है उन सभी उम्मीदवारों के दस्तावेज़ सार्वजनिक किए जाएं। जब सब कुछ सही है तो देखाने में डर कैसा।
मामला महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा का है। सवाल उठते हैं कुछ उम्मीदवारों के 10 वर्ष पूरे नहीं, कुछ उम्मीदवारों के पढ़ाने के अनुभव पूरे नहीं, कुछ के जाति प्रमाण पत्र सही नहीं, कुछ के पीएचडी के प्रमाण पत्र सही नहीं। इन सभी सवालों के जबाब हिंदी विश्वविद्यालय को देने की जरूरत है जिससे बार-बार उठने वाले सवालों को हमेशा के लिए खत्म किया जा सके।
शिक्षा मंत्रालय को भी गांधी और विनोबा की इस भूमि में बने इस विश्वविद्यालय की गरिमा और प्रतिष्ठा को बचाने के लिए और देश के उच्च सदनों में उठने वाले तमाम प्रश्नों को करारा जबाब देने के लिए एक उच्च स्तरीय जांच समिति गठित कर जांच कराकर स्थिति को साफ कर देना चाहिए।